Saturday, 10 December 2011

सबसे पहले हमे अपनी मानसिकता बदलनी होगी |

                आज भी हम लोगो की मदद करने वाला कोई नहीं है क्योंकि हमे इस तरह जीने की आदत सी हो गयी है| किसी भी बात के लिए हम दूसरो को दोषी ठहराते है| किसी भी बात पर हम बोलते है जो हो रहा है होने दो| जबकि हमको अच्छी तरह से मालूम होता है की जो रहा है वह किसी न किसी तरह से हमे भी दुष्प्रभावित करेगा| यदि साथियों हमने अब भी अपने हक़ की लड़ाई को नहीं लड़ा और हम अब भी नींद से नहीं जागे तो शायद वक्त दोबारा हमे मोका भी न दे|
                आसान है दोषों का अंदाज़ा लगाना और इससे भी आसान  है,ये बोल कर अपनी जिम्मेवारी से पल्ला झाड़ लेना की पूरा तंत्र (system) मे ही दोष है, जो एक ईमानदार को भी आखिर मे बेईमान बना देता है| "यदि तुम्हारे घर मे बरसात का पानी आने लगे तो तुम उस समय  क्या करोगे? अब बादल या उस मकान को बनाने वाले मजदूर-मिस्त्रियों को कोसना शुरू नहीं कर दोगे| यदि ऐसा करते हो तो तुम घर मे ही डूब जाओगे और  परेशानी  खुद  झेलोगे| यदि तुम उस परेशानी से बचना चाहते हो तो तुम उस सुराख़ को बंद करने का प्रयास करोगे जहाँ से बरसात का पानी आ रहा होगा और जिससे घर मे पानी आना बंद हो जाये " | ठीक इसी तरह यदि हमारे तंत्र, समाज मे यदि कोई कमी(सुराख़)  है तो हमें उसे बंद करके, मरम्मत करके ठीक करना हमारा फ़र्ज़ बनता है |
              बहुत हो गया सहनशीलता का पाखंड हमें अपने अतीत को याद करना होगा | जब तक हम परमाणु संपन्न नहीं हुए हमें संयुक्त-राष्ट्रसंघ  मे सम्मानजनक स्थान नहीं मिला | यह एक सबक है:- 
"शांत रहो पर अशांत करने वालों को सबक सिखाने के लिए हमेशा तैयार रहो, हमेशा अपनी सुरक्षा के लिया तत्पर रहो |"  
              हमें चन्द्रगुप्त मोर्य के शासनकाल से प्रेरणा लेनी होगी| जिसका शासन गांधार (आफ्गानिस्तान) से कामरूप(असम) तक था| विश्वविजेता विजेता  सिकंदर को भी जिससे संधि करनी पड़ी|
           हम सारे चाहते है की सब कुछ ठीक हो जाये पर हम सब सोचते है की मै अकेला क्या कर सकता हूँ ,,मै अकेला क्या कर सकता हूँ | मै पूछता हूँ ये "मै" "मै" मिलकर ही तो "हम" बनता है, इसी तरह ही बोलते रहे तो एक दिन सच मे ही हम कुछ करने लायक नहीं रह पाएंगे!
           आप कह सकते हैं एक आदमी के  कहने और करने से क्या होने वाला है, तो मै पूछता हूँ ;यदि सभी लोग इसी तरह और ऐसा  ही सोचने लगे तो  सच मे इस देश का कुछ नहीं हो सकता|
            

देह शिवा वर मोहि इहै | शुभ कर्मन ते कबहूं न टरू, न डरू अरि सै जब 
जाई लारो निसचै कर अपनी जीत कोरू |



1 comment:

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